सहजयोग सीखने में अंर्तदर्शन के लिए श्री कृष्ण की लीला से उपयोगी हैं संदेश

सहजयोगमानव कल्याण के लिए सद्गुरु के मार्गदर्शन में बहुत आसान सरल तरीके से सतत अंतर्दृष्टि, चिंतन–मनन से स्वयं के अंदर सुधार का कार्य योग क्रिया में होता है, इसी संदर्भ में श्री माता जी निर्मला देवी जानकारी देती हैं कि हम लोगों को अब ये सोचना है कि सहजयोग तो अब बहुत फैल गया।

और किनारे किनारे पर लोग सहजयोग को बहुत मानते हैं लेकिन जब तक हमारे अंदर सहजयोग पूरी तरह से व्यवस्थित रूप से प्रगटित नहीं होगा तब तक लोग सहजयोग को मानते हैं वो मानेंगे नहीं, इसलिए जरूरत है,

कि हम कोशिश करें कि अपने अंदर झांकें, यही कृष्ण का संदेश है कि हम अपने अंदर झांकें और देखें कि हमारे अंदर कौन-कौन सी ऐसी चीजें हैं जो हमें दुविधा में डाल देती हैं, इसका पता लगाना चाहिए, हमें अपने अंदर देखना चाहिए और वो कोई कठिन बात नहीं है।

जब हम सोचते रहते हैं कि दूसरे आदमी को कैसे ठीक करें, जब हमारा चित्त दूसरों पर जाता है तभी हम अपने रास्ते से हट जाते हैं, क्योंकि हमें खुद ठीक होना है इसलिए दूसरों के बारे में सोचने से क्या फायदा, तो सबसे पहले अपने बारे में ही दृष्टिपात करना चाहिए, जब हम दूसरों के बारे में सोचते हैं।

दूसरों के दोषों को देखने की बजाय हमें अपने अंदर के दोषों को देखना चाहिए, अगर ये देखना हमें आ जाये तो बहुत कुछ ठीक हो जायेगा, श्रीकृष्ण का ध्यान करने से हमारे अंदर की सफाई हो जाती है प्रतिष्ठान, पुणे 10 अगस्त 2003 के प्रवचन से साभार।।

सहजायोगा डॉट ओआरजी डॉटइन ऑनलाइन के माध्यम से इंट्रोस्पेक्शन में काफी मदद मिल जाती है इसके लिए टोल फ्री 18002700800 भी जारी किया गया है ।

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